पुरापाषाण युग
आखेटक और खाद्य संग्राहक आदिम मानव
इस काल में मानव अपना खाद्य कठिनाई से ही बटोर पाता था और शिकार से जीता था वह खेती करना और घर बनाना नहीं जानता था। यह अवस्था सामान्यत: 9000 ईस्वी पूर्व तक बनी रही। पुरापाषाण युग के औजार छोटानागपुर के पठार में मिले जो 10000 ईस्वी पूर्व के हो सकते है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले की बेलन घाटी में जो पशुओं के अवशेष मिले हैं उनसे यह स्पष्ट है कि इस युग में बकरी -भेड़, गाय, भैंस, आदि मवेशी पाले जाते थे और इस युग का मानव शिकार तथा खाद्य संग्रह पर जीता था। पुरापाषाण कालीन औजार उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में बेलन घाटी में भी पाए गए है। भोपाल से दक्षिणी में 40 किलोमीटर दूर स्थित भीमबेटका की गुफाओ और शैलाश्रयों में मिले हैं वे मोटा-मोटी 10000 ईस्वी पूर्व के है।
सरल परिभाषा
इस काल में मनुष्य जंगली जीवन जीता था इस काल के पत्थर से बने औजार मिले हैं इससे इंसान शिकार करता था और शिकार करके खाता था इस काल में मनुष्य ने आग जलाना सीखा था। इस काल में कोई पशुपालन भी नहीं होता था मुख्य औजार पत्थर से निर्मित हुआ करते थे और औजार ज्यादा नुकीले भी नहीं हुआ करते थे। और यह लोग कृषि करना भी नहीं जानते थे।
मध्यपाषाण युग आखेटक और पशुपालक
मध्यपाषाण काल में जलवायु, पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं में परिवर्तन हुए। इसी युग में मानव नए क्षेत्रों की ओर अग्रसर हुआ। 9000 ईस्वी पूर्व में एक मध्यवर्ती अवस्था आई जो मध्य पाषाण युग कहलाती है। इस युग के मानव शिकार करके मछली पकड़ कर और खाद्य वस्तुएं बटोर कर पेट भरते थे। फिर इसी युग में ये लोग आगे चलकर पशु पालन भी करने लगे और उनके औजार तथा हथियार भी काफी नुकीले छोटे और सुधारात्मक हो चुके थे जो इनके द्वारा पत्थरों से बनाए जाते थे इसलिए इसे लघु पाषाण युग कहा जाता है उनके हथियारों में धनुष, तीर भी हुआ करता था। जिससे ये लोग मछली का शिकार करते थे।
इनके औजार इन स्थानों पर पाए गए
बागोर राजस्थान, महगड़ा व दमदमा उत्तर प्रदेश, भीमबेटका, आदमगढ़, मध्य प्रदेश।
प्राचीनतम कलाकृतियां
पुरापाषाण और मध्य पाषाण युग के लोग चित्र बनाते थे और ऐसे चित्र कई स्थानों पर पाए जाते हैं। लेकिन मध्य प्रदेश का भीमबेटका स्थल अद्भुत है। यह भोपाल से 40 किलोमीटर दक्षिण विंध्य पर्वत पर अवस्थित है इसमें 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बिखरे 500 से भी अधिक चित्रित गुफाएं हैं। लेकिन इसमें अनेकों गुफाएं मध्यपाषाण काल के लोगों से सम्बद्ध है। यहां बहुत सारे पशु-पक्षी और मानव चित्र हैं। इन कलाकृतियों में चित्रित अधिकांश पशु पक्षी वे है, जिनका शिकार जीवन निर्वाह के लिए किया जाता था।
नवपाषाणयुग खाद्य-उत्पादक
नवपाषाण युग की एक ऐसी बस्ती मिली है जिसका समय लगभग 7000 ईसवी पूर्व बताया जाता है। यह पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में अवस्थित मेहरगढ़ में है नवपाषाण युग में वह लोग विकसित हो चुके थे। इस युग में वे पालिशदार पत्थरों के औजारों के साथ-साथ धातुओं के औजारों का भी प्रयोग करने लगे इन्हीं हजारों में खासतौर पर वह पत्थर की कुल्हाड़ी का प्रयोग करते थे। और यह कुल्हाड़ियाँ देश के अनेक पहाड़ी इलाकों में अनेक भागों में विशाल मात्रा में पाई गई है। और पौराणिक कथाओं में परशुराम तो कुल्हाड़ी से लड़ने वाले महान योद्धा हो गए हैं एक महत्वपूर्ण स्थान बुर्जहोम है। जिसका अर्थ होता है भुर्ज वृक्ष का स्थान।
यह श्रीनगर से उत्तर पश्चिम की ओर 16 किलोमीटर दूर है वह नवपाषाण युगीन लोग एक झील के किनारे जमीन के नीचे घर बनाकर रहते थे और शिकार और मछली पर जीते थे और नवपाषाण काल में लोग खेती से परिचित हैं और यह लोग कृषि और पशुपालक दोनों धंधे करते थे नवपाषाण युगीन लोग पत्थर के पालिशदार औजारों के साथ-साथ हड्डियों से बने औजारों तथा हथियारों का प्रयोग भी करते थे। भारत में चिरांद ही एक ऐसा स्थान है जहां हड्डी के अनेक उपकरण पाए गए हैं या स्थान गंगा के उत्तरी किनारे पर पटना से 40 किलोमीटर पश्चिम में है। “बुर्जाहोम” के लोग धूसर मृदभांड का प्रयोग करते थे और यहां कब्रों में, पालतू कुत्ते भी अपने मालिकों के शवों के साथ दफनाए जाते थे।
नवपाषाण युग के लोगों का दूसरा समूह
इस युग के लोगों का दूसरा समूह दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के दक्षिण में रहता था और यह लोग आमतौर पर नदी के किनारे ग्रेनाइट की पहाड़ियों के ऊपर या पठारों में बसते थे। ये लोग पत्थर की कुल्हाड़ी के साथ-साथ कई तरह के प्रस्तर-फलकों का भी प्रयोग करते थे। और यह जानवर भी बहुत सारे पालते थे। इनके पास गाय, बैल, भेड़, ओर बकरी भी होती थी यह लोग सिलबट्टे का प्रयोग करते थे जिससे यहां प्रकट होता है कि यह लोग अनाज पैदा करना जानते थे तीसरा क्षेत्र जहां नवपाषाण युग के औजार मिले हैं वह असम की पहाड़ियों में पड़ता है नवपाषाण काल के औजार भारत की उत्तर पूर्वी सीमा पर मेघालय की गारो पहाड़ियों में भी पाए गए हैं और हम विन्धय के उत्तरी प्रदेशों मिर्जापुर और इलाहाबाद जिलों में भी कई नवपाषाण स्थल पाते हैं नवपाषाण युगीन स्थलों से संबंधित ये देश भी महत्वपूर्ण है- कर्नाटक में मस्की, ब्रह्मगिरि, हल्लूर, नरसीपुर तमिलनाडु में पैथम पल्ली।
कर्नाटक के पिकलीहल के, नवपाषाण युगीन निवासी पशुपालक थे। और यह गाय, बैल, बकरी, भेड़, आदि पालते थे। मेहरगढ़ में बसने वाले नवपाषाण युगीन अधिक उन्नत थे। ये गेहूं, जौ, और रुई उपजाते थे। और कच्ची ईटों के घरों में रहते थे। अनाजों की खेती करते थे और पशु पालते थे इसलिए उन्हें अनाज रखने के बर्तनों की आवश्यकता पड़ी। फिर पकाने खाने और पीने के पात्रों की भी आवश्यकता हुई। और कुंभकारी सबसे पहले इसी अवस्था में दिखाई देती है फिर मिट्टी के बर्तन चाक पर बनने लगे। और इन बर्तनों में पलिसदार काला मृदभांड धूसर मृदभांड और चटाई की छाप वाले मृदभांड शामिल हैं।
नवपाषाण युग के औजार सेल्ट, कुल्हाड़ियाँ, बसूले, छेनी आदि औजार उड़ीसा और छोटा नागपुर के पहाड़ी इलाकों में भी पाए गए है। परंतु मध्य प्रदेश के कुछ भागों में तथा उत्तरी दकन के कई प्रदेशों में नवपाषाण बस्तियों का आभास आमतौर से बहुत कम मिलता है जिसका कारण यह है कि यहाँ ऐसे पत्थर नहीं थे जिन्हें आसानी से खराद कर चिकना किया जा सके।
नवपाषाण युग का अंत होते होते धातुओं का इस्तेमाल शुरू हो गया। धातुओं में सबसे पहले तांबे का प्रयोग हुआ। और कई संस्कृतियों का जन्म पत्थर और तांबे के उपकरणों का साथ साथ प्रयोग करने के कारण हुआ। इन संस्कृति को ताम्र-पाषाण कहा गया। अधिक पढ़े