नालंदा विश्वविद्यालय:
नालन्दा विश्व विद्यालय का इतिहास हिंदी में
नालंदा प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और व्याख्या केंद्र था महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा केंद्र में हीनयान बौद्ध धर्म के साथ ही अन्य देशों के छात्र पढ़ते थे वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 8 5.5 किलोमीटर दक्षिण पूर्व राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर मैं एक गांव के पास सिकंदर किंगडम द्वारा खोजें गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज कर देता है अनेक पूरा भी लिखो और सातवीं शताब्दी में भारत के इतिहास को पढ़ने के लिए आए चीनी यात्री हैंनसॉन्ग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है यह 10000 छात्रों को पढ़ने के लिए 2000 शिक्षक थे प्रसिद्ध चीनी यात्री हैंनसॉन्ग ने सातवीं शताब्दी में यहां जीवन का एक महत्वपूर्ण वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था प्रसिद्ध बौद्ध सारीपुत्र का जन्म यहीं पर हुआ था।
संस्थापक कुमार गुप्त प्रथम
संस्थापक कुमार गुप्त प्रथम
इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्री गुप्त शासक कुमार गुप्त प्रथम 450-470 को प्राप्त है इस विश्वविद्यालय को हेमंत कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला गुप्त वंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा इस महान सम्राट हर्षवर्धन और पाल शासको का भी संरक्षण मिला स्थानीय शासको तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इस विदेशी शासको से भी अनुदान मिला थे।
स्वरूप
स्वरूप
यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासी विश्वविद्यालय था विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10000 एवं अध्यापकों की संख्या 2000 थी सातवीं सती में जब हैंडसाड आया था उसे समय 10000 विद्यार्थी और 1510 आचार्य नालंदा विश्वविद्यालय में थे इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया जापान चीन तिब्बत इंडोनेशिया फॉरेस्ट तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे नालंदा के विशिष्ट शिक्षा प्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे इस विश्वविद्यालय को नवी शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी।
परिसर अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से गिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था उत्तर से दक्षिण की ओर मतों की कतार थी और उनके सामने अनेक भाव स्तूप और मंदिर थे मंदिरों में बौद्ध भगवान की सुंदर मूर्तियां स्थापित थी केंद्रीय विद्यालय में 7 बड़े कक्षा थे और इसके अलावा 300 अन्य कमरे थे इनमें व्याख्यान हुआ करते थे अभी तक खुदाई में 13 मठ मिले हैं वैसे इससे भी अधिक मतों के होने की संभावना है मैथ एक से अधिक मंजिल के होते थे कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी दीपक पुस्तक इत्यादि रखने के लिए आले बने हुए थे प्रत्येक भट्ट के आंगन में एक कुआं बना था आठ विशाल भवन 10 मंदिर अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अभियान कक्षा के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झील भी थी।
आचार्य इस विश्वविद्यालय में तीन सैनिकों के आचार्य थे जो अपनी योग्यता अनुसार प्रथम द्वितीय और तृतीय श्रेणी में आते थे नालंदा के प्रसिद्ध आचार्य में शीलभद्र धर्मपाल चंद्रपाल गुणवती और इस्टीमती प्रमुख थे आठवीं सदी में हैंनसॉग के समय इस विश्वविद्यालय के प्रमुख शीलभद्र थे जो एक महान आचार्य शिक्षक और विद्वान थे।
प्रवेश के नियम
प्रवेश के नियम
प्रवेश परीक्षा अध्ययन कठिन होती थी और उसके कारण प्रतिभाशाली विद्यार्थी प्रवेश पा सकते थे उन्हें तीन कठिन परीक्षा स्तरों को तीन करना होता था यह विश्व का प्रथम ऐसा दृष्टांत है शुद्ध आचरण और संघ के नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक था।
1. अध्यापन पद्धती:
इस विश्वविद्यालय में आचार्य छात्रों को मौखिक व्याख्यान द्वारा शिक्षा देते थे इसके अतिरिक्त पुस्तकों की व्याख्या भी होती थी शास्त्रार्थ होता रहता था दिन के हर पैर में अध्ययन तथा शंका समाधान चलता रहता था।
2. अध्ययन क्षेत्र:
महायान के प्रवर्तक नागार्जुन वासु बंधु संग तथा धर्म कीर्ति की रचनाओं का सविस्तार अध्ययन होता था वेद वेदांत और संख्या भी पढ़ाए जाते थे व्याकरण दर्शन शल्य विद्या ज्योतिष योग शास्त्र तथा चिकित्सा शास्त्र भी पाठ्यक्रम के अंतर्गत थे।
3. पुस्तकालय:
नालंदा में शास्त्र विद्यार्थियों और आचार्य के अध्ययन के लिए 9 तारीख का एक विराट पुस्तकालय था जिसमें तीन लाख से अधिक पुस्तकों का अनुपम संग्रह था इस पुस्तकालय में सभी विषयों से संबंधित पुस्तक थी यहां रतन रंजन रत्नाेद्धि ,रतन सागर नामक तीन विशाल भवनों में स्थित था।
4. छात्रावास:
यहां छात्रों के रहने के लिए 300 कक्ष बने थे जिनमें अकेले या एक से अधिक छात्रों के रहने की व्यवस्था थी एक या दो भिक्षु छात्र एक कमरे में रहते थे कमरे छात्रों को प्रत्येक वर्ष उनकी अग्रिमता के आधार पर दिए जाते थे इसका प्रबंधन स्वयं छात्रों द्वारा छात्र संघ के माध्यम से किया जाता था।
5. छात्र संघ:
छात्रों का अपना संग था वह स्वयं इसकी व्यवस्था तथा चुनाव करते थे यह संघ छात्र संबंधित विभिन्न मामलों जैसे छात्रावासों का प्रबंध आदि करता था।
आर्थिक आधार छात्रों को किसी प्रकार की आर्थिक चिंता न थी उनके लिए शिक्षा भोजन वस्त्र औषधि और उपचार सभी निशुल्क थे राज्य की ओर से विश्वविद्यालय को 200 गांव दान में मिले थे जिसे प्राप्त आयऔर अनाज से उसका खर्च चलता था।