Gomateshwara Statue Story: Gomateshwara (Baahubali) Temple Karnataka

गोमटैश्वर प्रतिमा:

गोमतेश्वर (बाहुबली) मंदिर कर्नाटक

गोमटैश्वर प्रतिमा भारतीय राज्य कर्नाटक के श्रावण बेलगोला शहर में विद्या गिरी पहाड़ी पर 57 फीट ऊंची एक अखंड प्रतिमा है ग्रेनाइट के एक ही खंड से बनी यह प्रतिमा प्राचीन दुनिया की सबसे ऊंची अखंड प्रतिमाओं में से एक है।

गोमटैश्वर प्रतिमा जैन चरित्र बाहुबली को समर्पित है और शांति अहिंसा सांसारिक मामलों के त्याग और सादा जीवन के जैन उपदेशों का प्रतीक है इसका निर्माण पश्चिम गंगा राजवंश के दौरान लगभग 983 ईस्वी में हुआ था और यह दुनिया की सबसे बड़ी स्वतंत्र मूर्तियों में से एक है इसे 2016 तक सबसे ऊंची जैन प्रतिमा माना जाता था प्रतिमा का निर्माण गंग वंश के मंत्री और सेनापति चामुंडा राय ने करवाया था पड़ोसी इलाकों में जैन मंदिर है जिन्हें बस्दिके रूप में जाना जाता है और तीर्थकरों की कई छवियां है विद्या गिरी पहाड़ी श्रवण बेलागोला की दो पहाड़ियों में से एक है दूसरी चंद्र गिरी है जो कई प्राचीन जैन केदो का केंद्र है।
महामस्तकअभिषेक के रूप में जाने जाने वाला एक जैन आयोजन दुनिया भर से भक्तों को आकर्षित करता है महामस्तक अभिषेक उत्सव हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है जब गोमटैश्वर की मूर्ति को दूध केसर घी गाने के रस आदि से स्नान कराया जाता है जर्मन इंडो लार्जेस्ट हेंड्रिक्स जिमर ने इस अभिषेक को मूर्ति की ताजगी का कारण बताया है।
2007 में टाइम्स आफ इंडिया के एक सर्वेक्षण में इस प्रतिमा को भारत के सात अजूबों में से पहले चुना गया कल वोटो में से 49% इसके पक्ष में गए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में श्रवणबेल गोला मैं स्मारकों के एक समूह में गोमटैश्वर प्रतिमा को सूचीबद्ध किया है जिसे आदर्श स्मारक के रूप में जाना जाता है।

शास्त्र

मूर्ति में बाहुबली के लंबे समय तक ध्यान को दर्शाया गया है कयोत्सर्ग की मुद्रा में स्थिर चिंतन के कारण उनके पैरों के चारों ओर चढ़ने वाली लताए उगा आई हैं गोमटैश्वर की नमन छवि में घुंघराले बाल और बड़े कन्हे आंखें आदि खुली है दृष्टि नाक पर टिकी हुई है जो दुनिया को देखने के लिए उनकी उदासीनता को दर्शाती है उनके चेहरे की विशेषताएं पूरी तरह से तशी हुई है और फोटो के कोने पर एक हल्की मुस्कान है जो एक शनतंत्रिक शांति और जीवन शक्ति का प्रतीक है उनके कंधे चौड़े हैं भुजाएं सीढ़ी नीचे की ओर फैली हुई है और आकृति को जाघ के ऊपर तक कोई सहारा नहीं हे।
पृष्ठभूमि में एक चींटी का टीला है जो उनकी निरंत तपस्या का प्रतीक है इस चींटी के टीले से एक सांप और एक लता निकलती है जो दोनों पैरों और भुज के चारों ओर लिपटी हुई है और बचाव के ऊपरी हिस्से पर फूलों और जामुनों के गुच्छे के रूप में समाप्त होती है पूरी मूर्ति पर एक खुले कमल पर खड़ी है जो एक अनूठी मूर्ति को स्थापित करने में प्राप्त की गई संपूर्ण नेता को दर्शाता है गोमटैश्वर के दोनों और दो चोरी वॉक एक यक्ष और एक यक्षिणी भगवान की सेवा में खड़े हैं यह समृद्ध रूप से अलंकृत और खूबसूरती से नक्काशीदारआकृतियां मुख्य आकृति का पूरक है चींटी के तिल के पीछे की ओर एक कुंड भी दिखता है जिसमें के पवित्र स्नान के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पानी और रानी अनुष्ठान सामग्री को इकट्ठा किया गया है।
मूर्ति की भव्यता तथा उसका शांत स्वरूप और शांति दायक उपस्थित सभी जैन और गैर जान को अच्छी तरह क्या थे जिन्हें इसे देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है जब मैं 1910 में पवित्र स्थान का दौरा किया तो मेरी मुलाकात कुछ अंग्रेज पुरुष और महिला मिशन नारियों से हुई जिन्होंने पवित्र छवि के प्रति सम्मान के कारण अपने जूते उतार दिए और नंगे पैर ही इसे देखने गए उनकी भी वही राय थी जो मैंने ऊपर दी है छवि लगभग 57 फीट ऊंची है। 

महामस्तक अभिषेक

इस कार्यक्रम में 1910 में कृष्ण राजेंद्र वाडैयार और 2018 में नरेंद्र मोदी और रामनाथ कोविंद सहित कई राजनीतिक हस्तियों ने भाग लिया है। 

दंतकथा

कीवदांती के अनुसार गोमटैश्वर प्रतिमा का निर्माण पूरा होने के बाद चाबूंदराय ने सैकड़ो बर्तनों मैं एकत्रित पंच द्रव्य दूध नारियल ,चीनी ,अमृत और जल से महामस्तक अभिषेक का आयोजन किया लेकिन प्रतिमा की नाभि के नीचे द्रव प्रवाहित नहीं हो सका कुष्मांडानी एक गरीब बूढी महिला के फेस में प्रकट हुई जिन्होंने सफेद गुल्लीकया फल के आधे भाग के खोल में दूध पड़ा हुआ था और सर से पेड़ तक अभिषेक किया गया था चबूंदराय को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने बिना किसी अभियान और अहंकार के अभिषेक किया और इस बार सर से पेड़ तक अभिषेक किया गया।

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