हुमायूं का मकबरा इतिहास
हुमायूं का मकबरा इमारत परिसर मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है यहां नई दिल्ली के दीनापनाहअर्थात पुरानी किले के निकट निजामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है गुलाम वंश के समय में यह भूमि की नौकरी किले में हुआ करती थी और नसीरुद्दीन के पुत्र तत्कालीन सुल्तान के कूबड़ की राजधानी हुआ करती थी या मुखी इमारत मुगल सम्राट हुमायूं का मकबरा है और इसमें हुमायूं की कब्र सहित कई अन्य राज्य थी लोगों की भी कब्ररें हैं यह समूह विश्व धरोहर घोषित थे वह भारत में मुगल वास्तुकला का प्रथम उदाहरण है इस मकबरे में वहीं चारबाग शैली है जिसने भविष्य में ताजमहल को जन्म दिया यह मकबरा हुमायूं की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेश अनुसार 1562 में बना था इस भवन के वास्तुकार सैयद मुबारक इब्न मिराक घीयाउद्दीन एवं उसके पिता मिराक घीयाउद्दीन टैजिनी अफगानिस्तान के हैरत शहर से विशेष रूप से बुलवाया गया था मुखी इमारत लगभग 8 वर्षों में बनकर तैयार हुई और भारतीय उपमहाद्वीप में चारबाग शैली के प्रथम उदाहरण बनी यह सर्वप्रथम लाल बलवा पत्थर का इतने बड़े स्तर पर प्रयोग हुआ था 1993 में इस इमारत समूह को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
एक परिसर में मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूं का मकबरा है हुमायूं की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो तथा बेटे के सम्राट शाहजहां के जस्ट पुत्र धारा शिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राट जहांडर शाह, फारूकसियार, रफी उल दरजत ,रफी उल दौलत एवं आलमगीर द्वितीय आदि की खबरें स्थित है इस इमारत में मुगल स्थापत्य में एक बड़ा बदलाव दिखा इसके प्रमुख अंग चारबाग शैली के उद्यान थे ऐसे उद्यान भारत में इसे पूर्व कभी नहीं देखे थे और इसके बाद अनेक इमारतें का अभिन्न अंग बांटे गए यह मकबरा मुगलों द्वारा इससे पूर्व निर्मित हुमायूं के पिता बाबर के काबुल स्थित मकबरे बजे बाबर से एकदम भिन्न था बाबर के साथ ही सम्राटों को बाग में बने मकरों में दफन करने की परंपरा शुरू हुई थी अपने पूर्वज तैमूर लंग के समरकंद में बने मकबरे पर आधारित यह इमारत भारत में आगे आने वाली मुगल स्थापना के मकबरों की प्रेरणा बन यह स्थापत्य अपने चरम पर ताजमहल के साथ पहुंचा।
स्थापत्य: बाहरी रूप
स्थापत्य: बाहरी रूप
पाषाण निर्मित विशाल इमारत में प्रवेश के लिए दो 16 मीटर ऊंचे दो मंजिल प्रवेश द्वार पश्चिम और दक्षिण में बने हैं इन दो द्वारों में दोनों और कक्षा है एवं ऊपरी तल पर छोटे प्रांगण है मुख इमारत के इवान पर बने सितारे के समान ही एक छह किनारो वाला सितारा मुख्य प्रवेश द्वार की शोभा बढ़ाता है मकबरे का निर्माण मूल रूप से पत्थरों को गाड़ी छूने से जोड़कर किया गया है और उसे लाल बलवा पत्थर से ढका हुआ है इसके ऊपर पचकारी फर्श की सतह झरोखे की जालियां द्वारा चौखट और छज्जों के लिए श्वेत संगमरमर का प्रयोग किया गया है।
मकबरे का विशाल मुख्य गुंबद भी श्वेत संगमरमर से ही ढका हुआ है मकबरा 8 मी उच्च मूल चबूतरे पर खड़ा है 12000 वर्ग मीटर की ऊपरी सतह को लाल जालीदार मुंडे घिरे हुए हैं इस वर्गाकार चबूतरा के कोणों को छांटकर अष्टकोणदी आभास दिया गया है इस चबूतरे की नई में 56 कोटरियां बनी हुई है इनमें 100 से अधिक कमरे बनाई हुई है यहां पूरा निर्माण एक कुछ सीडीओ उच्च चबूतरे पर खड़ा है फारसी वास्तु कला से प्रभावित यह मकबरा 47 मी ऊंचा और 300 फीट चौड़ा है इमारत पर फारसी बलवास गुंबद बना है जो सर्वप्रथम सिकंदर लोदी के मकबरे में देखा गया था यह गुंबद 42.5 मीटर के ऊंचे गरदन रूपी बेलन पर बना है।
गुंबद के ऊपर 6 मीटर ऊंचा पीतल का रेड कलश स्थापित है और उसके ऊपर चंद्रमा लगा हुआ है जो तैमूर वंश के मकबरों में मिलता है गुंबद दोहरी परत में बना है बाहरी परत के बाहर श्वेत संगमरमर का आवरण लगा है और अंदरूनी परत गुफा रूपी बनी है गुंबद के शुद्ध और निर्मल श्वेत रूप से अलग शेष इमरत लाल बलवा पत्थर की बनी है जिस पर श्वेत और काले संगमरमर तथा पीले बलवा पत्थर से पचकारी का काम किया गया है यह रंगों का संयोजन इमारत को एक अलग आभा देता है।
आंतरिक बनावट
बाहर से लाल दिखने वाली इमारत की आंतरिक योजना को जाती ले इसमें मुख्य केंद्रीय कक्ष सहित 9 वर्गाकार कक्ष बने हैं इनमें बीच में बने मुख्य कक्ष को घेरे हुए शेष आठ दो मंजिली कक्षा बीच में खुलते हैं मुख्य कक्ष गुंबद दर एवं दुगनी ऊंचाई का एक मंजिला है और इसमें गुंबद के नीचे एकदम मध्य में आठ किनारे वाले एक जालीदार गिरे में जुटी मुगल सम्राट हुमायूं की कब्र बनी है यह इमारत की मुख्य कब्र है इसका प्रवेश दक्षिणी और एक इवान से होता है तथा अन्य दिशाओं के दीवानों में श्रेष्ठ संगमरमर की जाली लगी है।
सम्राट की असली समाधि ठीक नीचे अंतर कक्षा में बनी है इसका रास्ता बाहर से जाता है इसके ठीक ऊपर दिखावटी किंतु सुंदर प्रतिकृति बनाई हुई है नीचे तक आम पर्यटकों को पहुंच नहीं दी गई है पूरी इमारत में पिट्रॉ डयूर नामक संगमरमर की पचकारी का प्रयोग है और इस प्रकार के कब्र के नियोजन भारतीय इस्लामी स्थापत्य कला का महत्वपूर्ण अंग है जो मुगल साम्राज्य के बाद के मकबरों जिसे ताजमहल आदि में खूब प्रयोग हुआ है मुख्य कक्ष में संगमरमर की जालीदार घेरे के ठीक ऊपर मेहराब भी बनी है जो पश्चिम में मक्का की और बना है यह आमतौर पर प्रवेश द्वारों पर खुद एक कुरान के सुर 24 के बजे सूरन नूर की एक रेखा बनी है जिसके द्वारा प्रकाश किबला से अंदर प्रवेश करता है इस प्रकार सम्राट का स्तर उनके विरोधियों और प्रतिद्वंदियों से ऊंचा देवत्व के निकट हो जाता है।
प्रधान कक्षा के चार कोनों पर चार अष्टकोण कमरे हैं जो मेहराब दर दीर्घा से जुड़े हैं प्रधान कक्षा की भुजाओं के बीच में चार अन्य कक्ष भी बने हैं यह आठ कमरे मुख्य कब्र की परिक्रमा को बनाते हैं जैसे सूफीवाद और कई अन्य मुगल मकबरों में दिखती है साथ ही इस्लाम धर्म में जन्नत का संकेत भी करते हैं इन प्रत्येक कमरों में के साथ 88 कमरे और बने हैं जो कुल मिलाकर 124 कक्षा योजना का अंग है इन छोटे कमरों में कई मुगल नवाबों और दरबारी की कब्ररों को समय-समय पर बनाया हुआ है इनमें से प्रमुख है हमीदा बानो बेगम और दारा शिकोह की कब्र प्रथम दल को मिलाकर इस मुखी इमारत में लगभग 100 से अधिक कमरे बनी है जिनमें से अधिकांश पर पहचान ना बुद्धि होने के कारण दफन हुए व्यक्ति का पता नहीं है किंतु यह निश्चित है कि वह मुगल साम्राज्य के राज परिवार या दरबारी में से ही थे अतः इमारत को मुगलों का कब्रिस्तान संज्ञा मिली हुई है।