स्वर्ण मंदिर:
स्वर्ण मंदिर का इतिहास
History of Golden Temple |
श्री हरि मंदिर साहिब सिख धर्मबल्लंबियों का सबसे पवन धार्मिक स्थल या सबसे प्रमुख गुरुद्वारा है जिसे दरबार साहिब यह स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है या भारत के राज्य पंजाब के अमृतसर शहर में स्थित है और यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है पूरा अमृतसर शहर स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा हुआ है स्वर्ण मंदिर में हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं अमृतसर का नाम वास्तव में उसे सरोवर के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरु रामदास ने स्वयं अपने हाथों से किया था या गुरुद्वारा इसी सरोवर के बीचो-बीच स्थित है इस गुरुद्वारे का बाहरी हिस्सा सोने का बना हुआ है इसलिए इसे स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है सिखों के चौथे गुरु रामदास जी ने इसकी नींव रखी थी कुछ स्रोतों में यहां कहा गया है कि गुरुजी ने लाहौर के एक सूफी संत मियां अमीर से दिसंबर 15 77 में इस गुरुद्वारे की नई रखवाई थी।
स्वर्ण मंदिर को कई बार नष्ट किया जा चुका है लेकिन भक्ति और आस्था के कारण हिंदुओं और सिक्कों ने इसे दोबारा बना दिया इसे दोबारा 17 विसदी में भी महाराज सरदार जससा अहलूवालिया द्वारा बनाया गया था जितनी बार भी यहां नष्ट किया गया है और जितनी बार भी यह बनाया गया है उसकी हर घटना को मंदिर में दर्शाया गया है अफगान हमलावर ने 19वीं शताब्दी में इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया था तब महाराजा रणजीत सिंह ने इसे दोबारा बनवाया था और इसे सोने की तरह से सजाया था सन 1984 में हिंदुस्तान के टुकड़ा करने की मंशा रखने वाले एवं सैकड़ो निर्दोष हिंदू सिखों के हत्यारे आतंकी भिंडारावाले ने भी आस्था के केंद्र हर मंदिर साहिब पर कब्जा कर लिया था और इसे अपने ठिकाने के रूप में प्रयोग किया शुरुआत में आस्था का सम्मान करते हुए सुरक्षा एजेंटीयों ने अंदर घुसने से परहेज किया लेकिन 10 दिन तक चले इस संघर्ष में अंतत सेना को अंदर घुसकर ही इस आतंकी को खत्म करना पड़ा आतंकी भिंडारा वाले और उसके साथियों के पास से पाकिस्तान निर्मित सैकड़ो भारी हथियार जप्त किए गए 2017 में प्रस्तावित शाहिद गैलरी मेंAGPC ने भिंडारावाले को एक शहीद के रूप में पहचान देकर सबको चौंका दिया और भारत की अखंडता को ठेस पहुंचाई और सभी धर्म के राष्ट्रवादी लोगों को उनके इस निर्णय से धक्का लगा हैदराबाद के सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान इस मंदिर की ओर सालाना दान दिया करते थे।
स्थापत्य
स्थापत्य
लगभग 400 वर्ष पुरानी इस गुरुद्वारे का नक्शा खुद गुरु अर्जुन देव जी ने तैयार किया था यह गुरुद्वारा शिल्प सौंदर्य की अनूठी मिसाल है इसकी नक्काशी और बाहरी सुंदरता देखते ही बनती है गुरुद्वारे के चारों ओर दरवाजे हैं जो चारों दिशाओं में खुलते हैं उसे समय भी समाचार जातियों में विभाजित था और कई जातियों के लोगों को अनेक मंदिरों आदि में जाने की इजाजत नहीं थी लेकिन इस गुरुद्वारे के यहां चारों दरवाजे उन चारों जातियों का को यहां आने के लिए आमंत्रित करते थे यहां धर्म के अनुयाई का स्वागत किया जाता है।
परिसर
परिसर
श्री हरि मंदिर साहिब परिसर में दो बड़े और और कई छोटे-छोटे तीर्थ स्थल है यह सारे तीर्थ स्थल जलाशय के चारों तरफ फैले हुए हैं इस जलाशय को अमृतसर अमृतसर और अमृत झील के नाम से जाना जाता है पूरा स्वर्ण मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी दीवारों पर सोने की पत्तियों से नक्काशी की गई है हरी मंदिर साहिब में पूरे दिन गुरु वाणी की स्वर लहरिया गूंजती रहती हैं सिख गुरु को ईश्वर तुल्य मानते हैं स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने से पहले वह मंदिर के सामने सर झुकाते हैं फिर पैर धोने के बाद सीडीओ से मुख्य मंदिर तक जाते हैं सीडीओ के साथ-साथ स्वर्ण मंदिर से जुड़ी हुई सारी घटनाएं और इसका पूरा इतिहास लिखा हुआ है स्वर्ण मंदिर एक बहुत ही खूबसूरत इमारत है इसमें रोशनी की सुंदर व्यवस्था की गई है मंदिर परिसर में पत्थर का एक स्मारक भी है जो जांबाज सिख सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए लगाया गया है।
द्वार
द्वार
श्री हरि मंदिर साहिब के चार द्वार हैं इनमें से एक द्वारा गुरु रामदास सराय का है इस सारी में अनेक विश्राम स्थल है विश्राम स्थलों के साथ-साथ या 24 घंटे लंगर चलता है जिसमें कोई भी प्रसाद ग्रहण कर सकता है श्री हरि मंदिर साहिब मैं अनेक तीर्थ स्थान है इनमें से बेरी वृक्ष को भी एक तीर्थ स्थल माना जाता है इस बर बाबा बुद्ध के नाम से जाना जाता है कहा जाता है कि जब स्वर्ण मंदिर बनाया जा रहा था तब बाबा बुड्ढा जी इसी वृक्ष के नीचे बैठे थे और मंदिर के निर्माण कार्य पर नजर रखे हुए थे।
सरोवर स्वर्ण मंदिर सरोवर के बीच में मानव निर्मित दीप पर बना हुआ है पूरे मंदिर पर सोने की परत चढ़ाई गई है या मंदिर एक पल द्वारा किनारे से जुड़ा हुआ है झील में श्रद्धालु स्नान करते हैं झील मछलियों से भरी हुई है मंदिर से 100 मीटर की दूरी पर स्वर्ण जनित अकाल तख्त है इसमें एक भूमिगत ताल है और पांच अन्य ताल है इसमें एक संग्रहालय और सभागार है यहां पर शरबत खालसा की बैठकें होती हैं सिख पंथ से जुड़ी हर मसले या समस्या का समाधान इसी सभागार में किया जाता है।
स्वर्ण मंदिर परिसर में स्थित सभी पवित्र स्थलों की पूजा स्वरूप भक्तगण अमृतसर के चारों तरफ बने गलियारे की परिक्रमा करते हैं इसके बाद वे अकाल तख्त के दर्शन करते हैं अकाल तख्त के दर्शन करने के बाद श्रद्धालु पंक्तियों में स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करते हैं यहां दुख भांजनी बेरी नामक एक स्थान भी है गुरुद्वारे की दीवार पर अंकित कविदंती के अनुसार की एक बार एक पिता ने अपनी बेटी का विवाह कोड ग्रस्त व्यक्ति से कर दिया उसे लड़की को यह विश्वास था कि हर व्यक्ति के समान वह कुड़ी व्यक्ति भी ईश्वर की दया पर जीवित है वही उसे खाने के लिए सब कुछ देता है एक बार वह लड़की शादी के बाद अपने पति को इसी तालाब के किनारे बिठाकर गांव में भोजन की तलाश के लिए निकल गई तभी वहां अचानक के कौवा आया उसने तालाब में डुबकी लगाई और हंस बनकर बाहर निकाला ऐसा देखकर कोड ग्रस्त व्यक्ति बहुत हैरान हुआ उसने भी सोचा कि अगर मैं भी इस तालाब में चला जाऊं तो कोर्ट से निजात मिल जाएगी उसने तालाब में चलांग लगा दी और बाहर आने पर उसने देखा कि उसका कोड नष्ट हो गया या वही सरोवर है जिसमें आज हर मंदिर साहिब स्थित है तब दिया छोटा सा तालाब था जिसके चारों ओर बेरी के पेड़ थे तालाब खाकर तो अब पहले से काफी बड़ा हो गया है तो भी उसके एक किनारे पर आज भी बेरी का पेड़ है या स्थान बहुत पवन माना जाता है यह भी श्रद्धालु माथा टेकते हैं।
अकाल
अकाल
तख्त गुरुद्वारे के बाहर दी और अकाल तख्त है अकल तख्त का निर्माण सन 1609 में किया गया था या दरबार साहिब स्थित है उसे समय यहां कई अहम फैसले लिए जाते थे संगमरमर से बनी यह इमारत देखने योग्य है इसके पास शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन समिति का कार्यालय है जहां सिखों से जुड़े कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं।
लंगर
लंगर
गुरु का लंगर में गुरुद्वारा आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खाने पीने की पूरी व्यवस्था होती है यह लंगर श्रद्धालुओं के लिए 24 घंटे खुला रहता है खाने पीने की व्यवस्था गुरुद्वारे में आने वाले चढ़ावे और दूसरे कोसों से होती है लंगर में खाने पीने की व्यवस्था शिरोमणि गुरुद्वारा डा प्रबंधन समिति की ओर से नियुक्त सेवादार करते हैं वे यहां आने वाले लोगों की सेवा में हर तरह से योगदान देते हैं।