हड़प्पा संस्कृति कांस्य युग सभ्यता
जानिए सिंधु घाटी सभ्यता /कांस्य युगीन सभ्यता /द्रविड़ सभ्यता के बारे में

- भौगोलिक विस्तार
सिंधु या हड़प्पा सभ्यता उन अनेकों ताम्रपाषाण संस्कृतियों से पुरानी है। लेकिन यह उन संस्कृतियों से कहीं अधिक विकसित थी। इस संस्कृति का उदय ताम्रपाषाणिक पृष्ठभूमि में ‘भारतीय उपमहादेश के, पश्चिमोत्तर भाग में हुआ।
इस सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की थी। इसका नाम हड़प्पा संस्कृति पड़ा क्योंकि इसका पता सबसे पहले 1921 में पाकिस्तान के प्रांत में अवस्थित हड़प्पा नामक आधुनिक स्थल में चला।
अब तक इस उपमहादेश में हड़प्पा संस्कृति के लगभग 1500 स्थलों का पता लग चुका है। इनमें कुछ हड़प्पा संस्कृति की आरंभिक अवस्था के हैं। कुछ परिपक़्व अवस्था के और कुछ उत्तर अवस्था के हैं। किंतु परिपक़्व अवस्था वाले स्थलों की संख्या सीमित है। और उनमें केवल 7 को ही नगर की संज्ञा दी जा सकती है। इनमें से 2 सर्वाधिक महत्व के नगर थे। पंजाब में हड़प्पा, और सिंध में मोहनजोदड़ो, दोनों पाकिस्तान में पड़ते हैं।
- नगर योजना और संरचनाएं
हड़प्पा संस्कृति की विशेषता थी। कि इसकी नगर योजना प्रणाली हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों नगरों के अपने-अपने दुर्ग थे। जहां शासक वर्ग के लोग रहते थे। जहां ईंटों के मकानों में, सामान्य लोग रहते थे।
- पशुपालन
कृषि पर निर्भर होते हुए भी हड़पाई लोग बहुत सारे पशु पालते थे। वह पशुओं में, बैल-गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सुअर पालते थे। उन्हें कूबड़ वाला सांड विशेष प्रिय था। यह लोग गधे और ऊँट भी रखते थे। शायद इन पर यह लोग बोझा ढोते थे। हड़पाई लोगो को हाथी का ज्ञान था। वह गेंडे से भी परिचित थे। मेसोपोटामिया के समकालीन सुमेर के नगरों के लोग भी इन्हीं लोगों की तरह अनाज पैदा करते थे। और उनके पालतू पशु भी प्राय: वही थे। जो इनके थे। परंतु गुजरात में बसे हड़पाई लोग चावल उपजाते जाते थे। और हाथी पालते थे। यह दोनों बातें मेसोपोटामिया के नगरवासियों पर लागू नहीं होती है।
- व्यापार
सिंधु सभ्यता के लोगों के जीवन में व्यापार का बड़ा महत्व था। इसकी पुष्टि हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और लोथल में अनाज के बड़े-बड़े कोठारों के पाए जाने से होती है। हड़पाई लोग सिंधु सभ्यता क्षेत्र के भीतर पत्थर, धातु हड्डी आदि का व्यापार करते थे। लेकिन वस्तु निर्माण के लिए कच्चा माल उनके नगरों में उपलब्ध नहीं था। इसलिए वह धातु के सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे। यह लोग नावो, बैलगाड़ियों, पहिया से परिचित थे। हड़पाई लोगो का व्यापारिक संबंध राजस्थान के एक क्षेत्र से था। और अफगानिस्तान और ईरान से भी। उन्होंने उत्तरी अफगानिस्तान में अपनी वाणिज्य बस्ती स्थापित की थी। जिसके सहारे उनका व्यापार, मध्य एशिया के साथ चलता था।
- धार्मिक प्रथाएं
हड़प्पा में पक्की मिट्टी की स्त्री मूर्तिकाएँ भारी संख्या में मिली है। एक मूर्तिका में, स्त्री के गर्भ से निकलता पौधा दिखाया गया है। यह संभवत: पृथ्वी देवी की प्रतिमा है। इसलिए मालूम होता है। कि हड़पाई लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे। और इसकी पूजा भी करते थे।
- सिंधु घाटी के पुरुष देवता
पुरुष देवता एक मुहर पर चित्रित किया गया है। उसके सिर पर तीन सिंग है। वह एक योगी की ध्यान मुद्रा में, एक टांग पर दूसरी टांग डालें पद्मासन लगाए बैठा दिखाया गया है। उसके चारों ओर एक हाथी, एक बाघ, और एक गेंडा है। आसान के नीचे एक भैसा है और पांवों पर दो हिरण है। मुहर पर चित्रित देवता को, पशुपति महादेव बतलाया गया है। हड़प्पा में पत्थर पर बने लिंग और योनि के अनेकों प्रतीक मिले हैं। संभवत: यह पूजा के लिए बने थे। ऋग्वेद में लिंग-पूजक अनार्य जातियों की चर्चा है। लिंग पूजा हड़प्पा काल में शुरू हुई। और आगे चलकर हिंदू समाज में पूजा की विशिष्ट विधि मानी जाने लगी।
- वृक्षों और पशुओं की पूजा
सिंधु घाटी के लोग वृक्ष-पूजा भी करते थे। और हड़प्पा काल में पशु-पूजा का भी प्रचलन था। इनमें सबसे महत्व का है। एक सींग वाला जानवर यूनिकॉर्न जो गेंडा हो सकता है। उसके बाद महत्त्व का है, कूबड़ वाला सांड। आज भी जब ऐसा सांड बाजार की गलियों में चलता है। तो धर्मात्मा हिंदू इसे रास्ता दे देते हैं। इसके बाद पशुपति की पूजा करते थे। स्पष्ट है कि सिंधु सभ्यता के लोग वृक्ष, पशु की, देवता के रूप में पूजा करते थे। लेकिन अपने इन देवताओं के लिए मंदिर नहीं बनाते थे। जैसा कि प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया में बनाया जाता था। हड़पाई लोग भूत-प्रेतों पर विश्वास करते थे। और वह ताबीज पहनते थे। ताबीज बड़ी तादाद में मिले हैं। अर्थव्यवस्था में अनेकों तंत्र-मंत्र या जादू-टोने दिए गए हैं। और रोगों का तथा भूत-प्रेतों को भगाने के लिए ताबीज बताए गए हैं।
- हड़पाई लिपि
प्राचीन मेसोपोटामिया की तरह, हड़पाई लोगों ने भी लेखन कला का आविष्कार किया था। हड़पाई लिपि का सबसे पुराना नमूना 1853 में मिला था। और 1923 तक पूरी लिपि प्रकाश में आ गई। किंतु वह अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है। कुछ लोग इसे द्रविड़ या आद्य-द्रविड़ भाषा से जोड़ने का प्रयास करते हैं। कुछ लोग संस्कृत से, तो कुछ लोग सुमेरी भाषा से, परंतु इन पठनों में से, कोई भी संतोषप्रद नहीं है। लिपि ना पढ़े जाने के कारण साहित्य में हड़पाई लोगों का क्या योगदान रहा कुछ कहा नहीं जा सकता। हम उनके विचारों और विश्वासों के बारे में भी कुछ नहीं कह सकते। पत्थर की मुहरों और अन्य वस्तुओं पर हड़पाई लेखन के लगभग 4000 नमूने हैं। हड़पाईयों के अभिलेख इतने लंबे-लंबे नहीं है। जितने मिसरियों और मेसोपोटामिया के हैं। हम कह सकते हैं। कि हड़प्पा लिपि वर्णनात्मक नहीं बल्कि चित्रलेखात्मक है।
- माप-तौल
लिपि का ज्ञान हो जाने से निजी संपत्ति का लेखा-जोखा रखना आसान हो गया होगा। सिंधु क्षेत्र के नगरनिवासियों को व्यापार और अन्य आदान-प्रदानों में, माप-तौल की आवश्यकता हुई। और उन्होंने इसका प्रयोग भी किया। बाट के रूप में, व्यवहत वस्तुएं पाई गई हैं। हड़पाई लोग मापना भी जानते थे। ऐसे डंडे पाए गए हैं। जिन पर माप के निशान लगे हुए है। इनमें एक डंडा (मापन) कांसे का भी है।
- मृदभांड
हड़पाई लोग, कुम्हार के चाक का उपयोग करने में बड़े कुशल थे। उनके अनेक बर्तनों पर, विभिन्न रंगों की चित्रकारी देखने को मिलती हैं। हड़प्पा-भांडों पर, आमतौर से वृत्त या वृक्ष की आकृतियां मिलती हैं। कुछ ठीकरों पर मनुष्य की आकृतियां भी दिखाई देती हैं।
- मुहरे (सीले)
हड़प्पा संस्कृति की सर्वोत्तम कलाकृतियां हैं। उसकी मुहरे अब तक लगभग 2000 सीले प्राप्त हुई है। इनमें से अधिकांश सीलों पर लघु लेखों के साथ-साथ एकसिंगी जानवर, भैंस, बकरी और हाथी की आकृतियां उकेरी हुई हैं।
- प्रतिमाएं
हड़प्पा शिल्पी धातु (काँसे) की खूबसूरत मूर्तियां बनाते थे। या मूर्तिकला कला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है।
मूर्तिकाएं (टेराकोटा फ़िगरिन)
सिंधु प्रदेश में भारी संख्या में, आग में पक्की मिट्टी जो टेराकोटा कहलाती है। की बनी हुई मूर्तिकाएं मिली है। इनका प्रयोग यहां तो खिलौनों के रूप में होता होगा या पूज्य प्रतिमाओं के रूप में किया जाता होगा।
उद्भभव, उत्थान और अवसान
परिपक़्व हड़प्पा संस्कृति का हड़प्पा संस्कृति का अस्तित्व मोटे तौर पर 2550 ईस्वी पूर्व और 1900 ईसवी पूर्व के बीच रहा। अपनी इस पूरी अवधि में यह संस्कृति एक ही प्रकार के औजारों, हथियारों और घरों का प्रयोग करती रही। ईसा- पूर्व 19वीं सदी में आकार इस संस्कृति के दो महत्वपूर्ण नगर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो लुप्त हो गए। लेकिन अन्य स्थानों पर हड़प्पा संस्कृति धीरे-धीरे क्षीण होती हुई। और क्षीण होते-होते भी गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, और पश्चिम उत्तर प्रदेश के अपने सीमांत क्षेत्रों में लंबे समय तक जीवित रही। कई हड़प्पा-पूर्व बस्तियों के अवशेष पाकिस्तान के निचले सिंध और बलूचिस्तान प्रांत में तथा राजस्थान के कालीबंगा में मिले हैं। हड़प्पा संस्कृति कांस्य युगीन संस्कृति थी। लेकिन इसमें कांसे का उपयोग सीमित हुआ। और ज्यादातर पत्थर के औजार ही चलते रहे। अंत में हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्र जितना विशाल था। उतना विशाल और किसी भी समकालीन संस्कृति का नहीं था।
सिंधु घाटी सभ्यता के नष्ट होने पर मत
मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यताएँ तो 1900 ईस्वी पूर्व के बाद भी टिकी रही। हड़प्पा की नगर संस्कृति लगभग उसी समय लुप्त हो गई। इसके बहुत से कारण बताए जाते हैं। कहा जाता है। कि सिंधु क्षेत्र में वर्षा की मात्रा 3000 ईसवी पूर्व के आसपास तनिक-सी बड़ी और फिर ईस्वी पूर्व दूसरी शताब्दी के आरंभ भाग में कम हो गई। इससे खेती और पशुपालन पर बुरा असर पड़ा। कुछ लोगों का मत है कि पड़ोस के रेगिस्तान के फैलने से मिट्टी में लवणता बढ़ गई और उर्वरता घटती गई, इसी से सिंधु सभ्यता का पतन हो गया।
दूसरा मत यह है। कि जमीन धंस गई या ऊपर उठ गई। जिससे इसमें बाढ़ का पानी जमा हो गया। और भूकंप के कारण सिंधु नदी की धारा बदल गई। जिसके फलस्वरूप मोहनजोदड़ो का पृष्ठ प्रदेश वीरान हो गया। यह भी मत है। कि हड़प्पा संस्कृति को आर्यों ने नष्ट किया था। पर इसका साक्ष्य बहुत कम है।
हड़प्पा संस्कृति की नागरिकोत्तर अवस्था
हड़प्पा संस्कृति शायद 1900 ईस्वी पूर्व तक जीती जागती रही। बाद में इसकी नागरिक अवस्था लुप्त सी हो गई। जिसके परिचायक थे। सुव्यवस्थित नगर-निवेश, व्यापक ईंट-रचनाएं, लिखने की कला, मानक बाट-माप, दुर्गनगर और निम्नस्तरीय शहर के बीच अंतर, कांसे के औजारों का इस्तेमाल, और काले रंग की, आकृतियों से चित्रित लाल मृदभांड का निर्माण इसकी शैलीगत एकरूपता समाप्त हो गई। और शैली में भारी विविधता आ गई।